वांछित मन्त्र चुनें
आर्चिक को चुनें
देवता: अग्निः ऋषि: भरद्वाजो बार्हस्पत्यः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

ग꣡र्भे꣢ मा꣣तुः꣢ पि꣣तु꣢ष्पि꣣ता꣡ वि꣢दिद्युता꣣नो꣢ अ꣣क्ष꣡रे꣢ । सी꣡द꣢न्नृ꣣त꣢स्य꣣ यो꣢नि꣣मा꣢ ॥१३९७॥

(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)
स्वर-रहित-मन्त्र

गर्भे मातुः पितुष्पिता विदिद्युतानो अक्षरे । सीदन्नृतस्य योनिमा ॥१३९७॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ग꣡र्भे꣢꣯ । मा꣣तुः꣢ । पि꣣तुः꣢ । पि꣣ता꣢ । वि꣣दिद्युतानः꣢ । वि꣣ । दिद्युतानः꣢ । अ꣣क्ष꣡रे꣢ । सी꣡द꣢꣯न् । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । यो꣡नि꣢꣯म् । आ ॥१३९७॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1397 | (कौथोम) 6 » 2 » 7 » 2 | (रानायाणीय) 12 » 3 » 1 » 2


बार पढ़ा गया

हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

आगे फिर आचार्य का विषय वर्णित करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः -

जो (मातुः) माता सावित्री के (गर्भे) गर्भ में स्थित हो चुका है, जो (पितुः) मेरे पिता का भी (पिता) द्वितीय जन्म देनेवाला है, जो (अक्षरे) अक्षर परब्रह्म में (विदिद्युतानः) विशेषरूप से प्रकाशमान है और जो (ऋतस्य) सत्य ज्ञान के (योनिम्) कारणभूत वेद के (आसीदन्) निकट स्थित है, वह (अग्निः) विद्या से प्रकाशित आचार्य, मेरे (वृत्राणि) दोषों को (जङ्घनत्) अतिशयरूप से नष्ट करे। [यहाँ अग्निः वृत्राणि, जङ्घनत् पद पूर्वमन्त्र से लाये गए हैं] ॥२॥

भावार्थभाषाः -

जो स्वयं सावित्री और आचार्य के गर्भ में रहकर द्विज हो चुका है, वही विद्वान् सच्चरित्र आचार्य शिष्यों को विद्वान् बनाने तथा उनके दोषों को दूर करने में समर्थ होता है ॥२॥

बार पढ़ा गया

संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ पुनराचार्यविषयमाह।

पदार्थान्वयभाषाः -

यः (मातुः) सावित्र्याः (गर्भे) उदरे स्थितः, यः (पितुः) मम पितुरपि (पिता) द्वितीयजन्मप्रदाता अस्ति यः (अक्षरे)अविनश्वरे परब्रह्मणि (विदिद्युतानः) विशेषेण प्रकाशमानो विद्यते, यश्च (ऋतस्य) सत्यज्ञानस्य (योनिम्)कारणभूतम् वेदम् (आसीदन्) आसन्नो वर्तते, स मम वृत्राणि दोषान् जङ्घनत् भृशं हन्यादिति पूर्वेण सम्बन्धः ॥२॥२

भावार्थभाषाः -

यः स्वयं सावित्र्या आचार्यस्य च गर्भे स्थित्वा द्विजन्मा जातः स एव विद्वान् सच्चरित्र आचार्यः शिष्यान् विदुषः कर्तुं तेषां दोषांश्चापहर्तुं क्षमते ॥२॥